पूरे गांव में नहीं होती मिट्टी के गणेश प्रतिमा की स्थापना
बनखेड़ी ब्लाक के बाचावानी स्थित प्राचीन गणेश मंदिर है। इसमें भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है। इनका अपने आप में ही एक अद्भुत रहस्य है
दैनिक केसरिया हिंदुस्तान
नर्मदापुरम /बनखेड़ी – भक्तों का मानना है कि ये प्राचीन दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन मात्र से महिलाओं की सुनी गोद भर जाती है। यानि जिन महिलाओं को संतान नहीं हो रही है तो वे इस प्रतिमा से दर्शन कर अपनी संतान की इच्छा को पूर्ण कर सकती है। हर साल यहां हजारों श्रृद्धालु अपनी मन्त्रत लेकर भगवान के दरबार में दरकार लगाने पहुंचते है। यहां मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मंदिर को तिल गणेश मंदिर के भी नाम से जाना जाता है।
ग्यारह दिन धूम धाम से मनाते है सामूहिक गणेश उत्सव
गणेश उत्सव के दौरान पूरा गांव भक्ति में डूबा रहता है सभी सामूहिक मंदिर में साज सज्जा करते हे एब तरह तरह की महाप्रसादी भजन कीर्तन महाआरती का आयोजन किया जाता है भगवान गणेश के कोई बडी हानि नहीं हुई है अतिप्राचीन मंदिर में गणेश उत्सव के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ती है। यह मंदिर नर्मदापुरम से 90 किमी और पिपरिया से 18 किलोमीटर दूर बनखेड़ी रोड पर • बसे ग्राम बाचावानी में स्थित है। 400 वर्ष पुराने इस मंदिर की ऐतिहासिक प्रतिमा की विशेषता यह है कि इसमें एक दंत गणेश जी की सूंड दाहिनी ओर है। मूर्ति का निर्माण एक ही पत्थर से किया गया है। गणेश प्रतिमा के साथ ही ऋद्धि, सिद्धि, मूषक व शुभ लाभ भी बने हुए हैं। पारंपरिक रूप से गणेश चतुर्थी से यहां विशेष पूजा होती है, जो अनंत चतुर्दशी तक चलती है। गांव के 71 साल के बुजुर्ग बाबूलाल बड़कूर, संतोष पटेल ने बताया कि गांव में कही भी गणेश जी की स्थापना नहीं होती। पूरा गांव मंदिर में ही जाकर पूजन करता है। वर्षों पहले कुछ लोगों ने प्रतिमा स्थापित की थी।
प्राचीन मंदिर का है कुछ ऐसा रहस्य
मंदिर के पुजारी अनंत दास बैरागी, ने बताया कि इस प्राचीन मंदिर का बड़ा ही महत्व है। यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मनत मांगते हैं उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यह मंदिर आसपास के ग्रामीण अंचल में ख्यातिलब्ध है। हर वर्ष यहां तिलचवत पर यविशाल मेले का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि हर साल तिल चौथ पर इस प्रतिमा का कद तिल तिल बढ़ता है। ओर लोगों की मान्यता है कि यहां की मूर्ति प्रतिवर्ष तिल-तिल बहती है। इसके पीछे गांव के बुजुर्ग बाबूबलाल बड़कुर, एब गोविंद सोनी बताते है कि 4 सौ वर्ष पूर्व फतेहपुर के राजा श्रीगणेश के दर्शन करने बाचावानी ही आते थे। उन्होंने इस मूर्ति को फतेहपुर ले जाने का काफी प्रयास किया। राजा के आदेश से मूर्ति को हार्थी पर रखा गया लेकिन अंकुश के प्रहार से भी हाथी खूना खून तो हो गया लेकिन अपने स्थान से वो नहीं हिला। अंत में राजा ने इसे विधि का विधान माना और भगवान श्रीगणेश से क्षमा मांग मूर्ति को पुनः मंदिर में स्थापित किया गया। इस गांव में अभी तक ओले, आंधी और तूफान से कभी कोई बड़ी हानि नहीं हुई है
बाहरी लोगों ने बैठाई प्रतिमा, लग गई आग
ग्रामीण संतोष पटेल ने बताया गांव में कुछ साल पहले साँप पकड़ने वाले कुछ परिवार बाहर से आकर गांव में बसे । 3,4 साल पहले एक परिवार के घर में आग लग गई। फायर ब्रिगेड से आग बुझाया गया था। बाद में पता चला था कि उस घर में गणेश प्रतिमा स्थापित की थी।