दीपक तोमर महेश्वर
मंडलेश्वर।सिंगाजी महाराज की परचरी पुराण कथा का समापन ग्राम गांधीनगर में रविवार दोपहर भंडारे के साथ हुआ।मुख्य यजमान सुभाष यादव ने इस भव्य कथा का आयोजन किया था । व्यासपीठ पर सिंगाजीधाम से पधारे श्री रमेश चंद्र महाराज ने विराजित होकर प्रवचन दिए।पूर्व मंत्री डॉ विजय लक्ष्मी साधौ ने भी परचरी पुराण कथा में पहुंचकर व्यास पीठ का पूजन कर कथा श्रवण की।पांच दिन तक चली कथा में प्रतिदिन अन्य गांवों से भी भक्तों ने आकर कथा का श्रवण कर भक्ति का रस पान किया।समापन अवसर विशाल भंडारे का आयोजन किया गया जहां हजारों की संख्या के भक्तो ने सिंगाजी महाराज का प्रसाद ग्रहण किया। कार्यक्रम का संचालन दशरथ यादव ने किया मंशाराम वर्मा ने सभी का आभार माना ।इस अवसर पर मीडिया से चर्चा में कथा वाचक श्री रमेश चंद्र जी महाराज ने बताया कि परचरी पुराण की रचना सिंगाजी महाराज के ब्रम्हलीन होने के लगभग 150 वर्ष बाद संत सिंगाजी की प्रेरणा से खेमराज जी महाराज द्वारा की गई थी। परचरी पुराण में सिंगाजी महाराज मानव का मानव से परिचय कराते है उन्होंने मानव को उसका लक्ष बताया उनके द्वारा समस्त मानव को यह बताया गया है की वह कहां से आया है और उसे कहां जाना है ।जब मनुष्य यह समझ लेता है तो उसका जीवन सफल हो जाता है वेदों के ज्ञान को सिंगाजी महाराज ने अपने भजनों के माध्यम से जन जन तक पहुंचाने का कार्य किया है।संत सिंगाजी की समाधी स्थल तक पहुंचने के लिए बनाया ब्रिज अब भक्तो की संख्या के लिहाज से छोटा पड़ने लगा है।सरकार अब वहां 24 करोड़ की लागत से एक और ब्रिज बनाने जा रही है।सिंगाजी महाराज के नाम पर जन्मस्थल खजुरी (बड़वानी) समाधी स्थल (खंडवा) पिपल्या(महेश्वर) मोहना(महेश्वर)डकाचू(मालवा)और मिटावल में मेलो का भव्य आयोजन हो रहा है।सिंगाजी महाराज के जीवन पर आधारित एक पुस्तक हिंदी भाषा में प्रकाशित होने जा रही है।इसके प्रकाशन से हिंदी भाषी समाज को सिंगाजी महाराज के जीवन दर्शन को समझने में आसानी होगी।आपने सिंगाजी महाराज के दर्शन अध्यात्म से जुड़े सभी संतो का आव्हान किया की वे एक मंच पर आकर सिंगाजी महाराज की वाणी को जन जन तक पहुंचाने का कर मानव जाति का कल्याण करे।सिंगाजी ने पाखंडवाद का मंडन नहीं खंडन किया है।इसलिए मानव को सिंगाजी का दर्शन समझना होगा तभी जीवन सफल होगा।
संतो की बात प्रकृति को भी मानना पड़ती है।
संत सिंगाजी प्रकृति के पुजारी थे और संतों की कही बात कभी झूठी नही होती संतों की बात भले ही आज सच साबित नही हो लेकिन पांच सौ साल बाद उनकी बात सच होगी यह बात उनके भक्तो को भी नही पता थी।सिंगाजी ने अपनी मृत्यु से पहले ही यह इच्छा व्यक्त की थी की उनकी मृत्यु के बाद उनको जल समाधी दी जाय।लेकिन संत परंपरा के कारण उन्हें भूमि में समाधी दी गई थी। समाधी लेने के साढ़े चार सौ साल बाद जब नर्मदा पर बांध बना तो नर्मदा का बेकवाटर उनकी समाधी को डुबो गया ।परचरी कथा वाचक मिटावल के कमलानंद जी महाराज ने भी एक बड़ा ही रोचक प्रसंग सुनाते हुए कहा की संतो की बात को प्रकृति भी नही टाल सकती । उनकी बात आज नही तो कल सच साबित होती ही है। आपने बताया कि एक बार सिंगाजी के कुछ भक्त उनके पास गए और उनसे ओंकारेश्वर नर्मदा स्नान करने हेतु साथ चलने का आग्रह किया।तब संत सिंगाजी ने उनसे कहा था कि मैं दो बार ओंकारेश्वर जा चुका हूं मैं पांच दिन वहां रहा और प्रतिदिन नर्मदा स्नान किया इसलिए अब मैं नही जाऊंगा अगर मां नर्मदा की इच्छा होगी तो वह मुझे यहां आकर नहलाएगी।इस बात को वर्षो बीत गए लेकिन उनकी बात तब सच साबित हुए जब बेक वॉटर के रूप में उनकी समाधी को मां नर्मदा ने डुबोकर नहला दिया।कथा वाचक कमलानन्द जी ने कहा की सिंगाजी महाराज के जीवन पर आधारित एक धारावाहिक बनना चाहिए जिसमे वास्तविक घटनाओं का चित्रण काल्पनिक या फिल्मों जैसी कहानी नहीं होना चाहिए।