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हर नागरिक को संवेधानिक मूल्यों को जीवन मे आत्मसात करना होगा जयसिंह जादौन,बचपन मे घर से ही शुरू होता है लैंगिक भेदभाव सारिका श्रीवास्तव,संविधान पाठशाला का हुआ आयोजन

नौशाद अहमद कुरैशी दैनिक केसरिया हिंदुस्तान मो. 9977365001

श्योपुर– म प्र मेरी पहचान संविधान अभियान के तहत संवैधानिक पाठशाला का ऑनलाइन आयोजन हुआ जिसमें जिलेभर के 40 के लगभग युवाओं ने भाग लिया कार्यक्रम की मुख्य वक्ता इंदौर की बरिष्ठ समाजसेवी बहन सारिका श्रीवास्तव थी कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य वक्ता के परिचय से हुई
ततपश्चात कार्यक्रम का संचालन करते हुए बरिष्ठ समाजसेवी एवम सूत्रधार जयसिंह जादौन ने पाठशाला के बारे में बताते हुए कहा कि समाज व देश का विकाश तबही सम्भव है जब हम संवेधानिक मूल्यों को जीवन मे आत्मसात करेंगे मूल्यों के अभाव में हम भटकाव की तरफ बढ़ रहे है आज का बिषय समानता के संवेधानिक मूल्य के अंतर्गत लैंगिक समानता का अधिकार है
जयसिंह भाई ने बताया कि समानता के मूल्य में लैंगिक समानता का अधिकार मानव अधिकार है। इसका तात्पर्य है कि सभी वर्गों और जातियों की महिलाएँ, पुरुष, लड़के और लड़कियाँ समान रूप से भाग लेते हैं और उनका समान मूल्य होता है। उन्हें संसाधनों, स्वतंत्रताओं और नियंत्रण का प्रयोग करने के अवसरों तक समान पहुँच प्राप्त हो
लैंगिक समानता का मतलब है कि व्यक्तियों के अधिकार, ज़िम्मेदारियाँ और अवसर इस बात पर निर्भर नहीं होंगे कि वे पुरुष हैं या महिला, या तृतीय लिंगी ,विकलांग हैं या युवा हैं या बुज़ुर्ग, गोरे हैं या काले, या ग्रामीण या शहरी परिवेश से हैं। महिलाओं को सम्मान, सुरक्षा और संरक्षा के साथ जीने का अधिकार है। तथा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विकास के मामले में पुरुषों और महिलाओं को समान अवसर प्राप्त हों।
संविधान पाठशाला को सम्बोधित करते हुये मुख्य वक्ता इंदौर से वरिष्ठ समाजसेवी बहन सारिका श्रीवास्तव जी ने सभी युवा साथियों को और युवतियों को बताएं एवं समझाया गया। कि हम अपने जीवन में लैंगिक समानता किस प्रकार देखते हैं। लैंगिक समानता और असमानता किस प्रकार हमारे समाज में फैली हुई है। बहन सारिका जी ने बताया समानता के मूल्य को लेकर युवा साथियो से बात की। किस प्रकार हम युवावस्था से परिवार में देखते आ रहे हैं। कि हम बच्चों को सिखाते हैं। अगर कोई लड़की है तो उसे हम बोलते हैं, बहन सारिका जी ने इन शब्दों के द्वारा समझाया। कि लता एक लड़की है उसे बचपन से बोला जाता है कि लता उठ मुँह धो घर का खाना बना। और इसी प्रकार लड़का होता है तब उसे कहते हैं। राम उठ मुँह धो समय पर शाला जा। हम इस प्रकार ही बचपन से असमानताएं पैदा कर देते हैं। हम सभी के सामने बचपन से ही भेदभाव करने लगते हैं। हम उसमें कई प्रकार के भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। इन शब्दों से ही हमें लेंगिक समानता के बारे में बताया गया और समझाया। पुरुषों और महिलाओं के बीच लगातार बढ़ते मतभेद और असमानताएं समग्र रूप से समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। महिलाएं किसी भी समाज में आधे संसाधनों और आधी क्षमता का प्रतिनिधित्व करती हैं। जब महिलाएं असमानता और भेदभाव से विवश होती हैं तो यह क्षमता अधूरी रह जाती है। कई लैंगिक असमानताएँ बचपन में ही उभर आती हैं।लैंगिक असमानता के कारण महिलाओं को आज भी एक ज़िम्मेदारी समझा जाता है। महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक रुढ़ियों के कारण विकास के कम अवसर मिलते हैं, जिससे उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है
पाठशाला में महावीर मीणा योगेश कुमार धर्मेद्र जाटव बर्षा फूलोके दीनदयाल बादल रासबिहारी रिंकी मीणा सहित आने युवाओं साथियों ने आपसी सम्वाद में भाग लिया
कार्यक्रम के अंत मे आभार प्रदर्शन दुर्गेश भाई ने किया

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