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ज्ञानवान होना, त्यागी होना और समर्थ होना सद्गुरु की पहचान है – जोगीलाल मुजाल्दे

आशीष शर्मा दैनिक केसरिया हिंदुस्तान

सनावद-समर्थ सदगुरू कभी भी अपने शिष्यों से आशा और अपेक्षा नहीं रखते। आशा और अपेक्षा केवल यह रखते हैं कि उनके अंदर जो दोष और दुर्गुण हैं उनका शमन हो जाए। समर्थ सदगुरू अपने शिष्यों को प्राणवान बनाना चाहते हैं, उन्नत व्यक्तित्व के धनी बनाना चाहते हैं, उनका चरित्र और चिंतन अपने तप से श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं। समस्त दु:षप्रवृत्तियों का उन्मूलन करना चाहते हैं।उपरोक्त ऋषि चिंतन समीपस्थ ग्राम रामपुरा में गायत्री परिवार खरगोन के जिला संयोजक जोगीलाल मुजाल्दे ने पंच कुंडीय गायत्री महायज्ञ के माध्यम से 70 से अधिक नवीन परिजनों को गायत्री मंत्र की गुरु दीक्षा देते हुए दिया। उन्होंने कहा शिष्य जब अपनी पात्रता बढ़ाता है, गुरु के अनुशासन को अपने जीवन में उतरता है, तो उसी अनुपात में गुरु के अनुदान और वरदान प्राप्त करते हुए चला जाता है। समर्थ सदगुरू युगदृष्टा होते हैं, जो अपने शिष्यों को हर समस्या से समाधान का परिचय करवाते हैं और उनके जीवन को ऊंचा उठने में सफलता दिलाते हैं।समर्थ सद्गुरु के शिष्य नम्र होते हैं, उनका जीवन मर्यादित होता है, दूसरों का सम्मान करते हैं, अनुशासन प्रिय होते हैं, अच्छे गुणों को ग्रहण करने की प्रवृत्ति, जिज्ञासा उनके अंदर सदैव बनी रहती है।पंच कुंडीय गायत्री महायज्ञ तथा गुरु दीक्षा संस्कार से पूर्व अतिथियों ने देव मंच का पूजन किया। प्रेमलाल मालवीय लोहारी ने सपत्नीक कलश का पूजन करते हुए समस्त दो शक्तियों का आवाहन किया।मानसिंह रावत, जितेंद्र रावत, रोहित पटेल रतन कछवाहे ने अतिथियों का मंगल तिलक कर पुष्प दृष्टि से सम्मान किया।नरेंद्र जी बिल्लौर तहसील संयोजक भिकनगांव, संजीव जोशी, सुमेश सतोनिया, उमेश सिंह सोलंकी, माता जी, आसपास ग्रामीण क्षेत्र की गायत्री परिवार शाखों के परिजन युवा मंडल, महिला मंडल, ग्रामीण जन आदि उपस्थित थे।

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