दैनिक केसरिया हिन्दुतान दीपक बंशपाल
बालाघाट-सड़क निर्माण को शायद सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार वाले क्षेत्र के तौर पर देखा जाता है। यही वजह है कि सड़क निर्माण में गुणवत्ता को लेकर हमेशा संशय बना रहता है। यह आम है कि भारी राशि खर्च करके कोई सड़क तैयार की जाती है और बारिश या वाहनों के दबाव से कुछ ही समय बाद उसके टूटने की खबर आ जाती है। शायद इसी का जीता जगता उदाहरण बालाघाट जिले मे देखने को मिल रहा हैँ, परसवाड़ा से चंगोटोला को जोड़ने वाला सडक मार्ग ठेकेदार के द्वारा घटिया निर्माण सामग्री का उपयोग किया गया और साइड शोल्डर के नाम पर लीपा पोती करते हुए विभाग के लाखों रुपये डकार गया.सड़कों की गुणवत्ता की सख्त निगरानी सुनिश्चित करने के लिए प्रधानमंत्री ने एक प्रभावशाली तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया। छिपी बात नहीं है कि सड़क निर्माण की निविदा निकलने से लेकर सामग्री की खरीद, निर्माण और रख-रखाव तक भारी पैमाने पर भ्रष्टाचार पसरा हुआ है।परसवाड़ा से डोंगरिया कैंप होते हुए यह मार्ग चंगोटोला से होते हुए जिला सिवनी को जोड़ता हैँ इस पर विभागीय अदिकारियों की मिली भगत और ठेकेदार की लापरवाही का नतीजा हैँ की इस रोड पर नई सडक तो बन गयी हैँ लेकिन ना ही साइड सोल्डर का पता हैँ और ना ही अच्छी गुणवत्ता का.क्या जिले लोक निर्माण विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर लेगे मामले पर संज्ञान या फिर फिर होंगी लीपापोती ये देखने वाली बात हैँ.ऐसा इसलिए संभव होता है कि किसी खास दूरी में सड़क निर्माण के लिए सब कुछ नाप-तौल कर बजट बनाया जाता है, मानक तय किए जाते हैं और राशि जारी की जाती है। लेकिन संबंधित महकमे के अधिकारियों से लेकर निचले स्तर के ठेकेदार तक भ्रष्ट तरीके से इसी राशि में से हिस्सा बंटाने के फेर में इस बात का खयाल रखना जरूरी नहीं समझते कि इसका सड़क की गुणवत्ता पर क्या असर पड़ेगा। बचे हुए पैसे में काम पूरा करने की कोशिश का नतीजा यह होता है कि जिस सड़क को बनाने में जितनी और जिस स्तर की सामग्री का उपयोग होना चाहिए उसमें कभी मामूली तो कभी ज्यादा कटौती कर दी जाती है।